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Title: जोधपुर किले की नींव में दलितों की बलि की दास्तान
Author: Unknown
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राजस्थान में राजा रजवाड़ों के जमाने से तालाबों, किलों, मंदिरों व यज्ञों में ज्योतिषियों की सलाहपर शूद्रों को जीवित गाड़कर या जलाक...








राजस्थान में राजा रजवाड़ों के जमाने से तालाबों, किलों, मंदिरों व यज्ञों में ज्योतिषियों की सलाहपर शूद्रों को जीवित गाड़कर या जलाकर बलि देने की परम्परा थी। अमर शहीद राजा राम मेघवाल भी उनमें से एक है। जोधपुर के राजा राव जोधा के शासन काल में जोधपुर की पहाड़ियों पर विशाल मेहरानगढ़ किले का निर्माण हुआ था। इसी गगनचुम्बी भव्य किले की नींव में ज्योतिषी गणपतदत्त की सलाह पर 15मई 1459 को दलित राजाराम मेघवाल उसकी माता केसर व पिता मोहणसी को नींव में चुना गया। राजपूत राजाओं में यह अंधविश्वास चला आ रहा था कि यदि किसी किले की नींव में कोई जीवित पुरूष की बलि दी जाय तो वह किला हमेशा राजा के अधिकार में रहेगा, हमेशा विजयी होगा और राजा का खजाना हमेशा भरा रहेगा। उस काल में सामाजिक व धार्मिक व्यवस्था के अनुसार अछूत की छाया तक से घृणा की जाती थी लेकिन जब नर बलि की बात आती थी तो हमेशा अछूतों को पकड़ कर जिंदा गाड़ा जाता था। शूरवीर कहलाने वाले न क्षत्रिय आगे आते थे, न विद्वान कहलाने वाले पंडित और न ही राजा का गुणगान करने वाले चाटुकार अपनी नरबलि के लिए तैयार होते थे।
राजाराम के इस महान बलिदान को जातिवादी मानसिकता के इतिहासकारों ने सिर्फ डेढ़ लाइन में समेट लिया। जहां राजाराम की बलि दी गई थी उस स्थान के ऊपर विशाल किले का खजाना व नक्कारखाने वाला भाग स्थित है। किले में रोजाना हजारों देशी-विदेशी पर्यटक आते हैं लेकिन उन्हें उस लोमहर्षक घटना के बारे में कुछ भी नहीं बताया जाता है। एक दीवार पर एक छोटा-सा पत्थर जरूर चिपकाया गया है जो किसी पर्यटक को नजर ही नहीं आता है उस पत्थर पर धुंधले अक्षरों में राजाराम की शहादत की तारीख खुदी हुई है। राजाराम मेघवंशी की शहादत जैसी घटनाओं की अनगिनत कहानियां राजस्थान के हर कोने में बिखरी पड़ी हैं। महाराणा प्रताप की सेना में लड़ने वाले दलित आदिवासियों का महान योगदान रहा है। विदेशी आक्रमणकारियों की गुलामी से देश को आजाद कराने में न जाने कितने दलितों आदिवासियों ने कुर्बानी दी लेकिन इतिहास में उनका कहीं भी नामोनिशान नहीं है। दलित चिंतकों, संतों, क्रांतिकारियों व बलिदानियों को इतिहास में पूरी तरह से हाशिए पर रखा। अब दलितों द्वारा अपना गौरवषाली इतिहास लिखा जा रहा है। इसी कड़ी में ''अमर शहीद राजाराम मेघवाल'' नामक पुस्तक उस लोमहर्षक घटना की सच्चाई को सामने लाने वाली है जिसमें राव भाटों की बहियों, शिलालेखों व कई ऐतिहासिक दस्तावेजों को शामिल किया गया है। डा. एल.एल. परिहार द्वारा लिखित पुस्तक जहां एक ओर दलितों में वैचारिक जागृति पैदा करती है वहीं दूसरी ओर राजा, शासक, अमीर या आम व्यक्ति को यह सीख देती है कि धार्मिक कुप्रथाओं, अंधविश्विसों व अमानवीय परम्पराओं के आगे नतमस्तक न हों व अपने विवेक, तर्क व बुद्धि का प्रयोग कर वैज्ञानिक सोच के साथ मानव कल्याण की राह चलें। महा मानव बुद्ध की राह चलें। करुणा,दया, प्रेम, मैत्री व शील का पालन करें। अंधविश्वासों, पाखण्डों, कर्मकांडों व कुप्रथाओं से समाज व देश का भारी नुकसान हुआ है। जिसका सबसे अधिक खामियाजा दलित वंचित वर्ग को भुगतना पड़ा है। इतिहास की यह लघु पुस्तक आवश्यक चित्रों के कारण काफी पठनीय व रोचक बन गई है। मूल्य मात्र 60 रूपये रखा ताकि मजदूर भी खरीदकर पढ़ सके।
समीक्षक-सुनील कुमार
प्रकाशक- बुद्धम पबिलशर्स, 21-।, धर्मपार्क श्यामनगर, जयपुर 302019 मो. 9414242059


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  1. इस जानकारी ने लोगों का ध्यान खींचा है. आपका आभार प्रमोदपाल जी.

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  2. we raely respect to Sheed RAJARAM GI
    I and my femly realy proud fo this massage taht showing taht the time of AAN / BAAN or SHAAN we are alwyes aheed and nobody can challange to our SAMAJ.
    But now time change than we can chang our SAMAJ by meeting/communacation/helping in matter of education etc.
    SANWAR LAL BHANBHI [BHOPAL]

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