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Title: लोक का आलोक
Author: Unknown
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 डॉ. राजेश कुमार व्यास "कलावाक्" ब्लॉग से साभार सौ न्दर्य की साधना किसी भी समाज के सांस्कृतिक स्तर का निर्धारण करती है। दैनिन्...
डॉ. राजेश कुमार व्यास
"कलावाक्" ब्लॉग से साभार

सौन्दर्य की साधना किसी भी समाज के सांस्कृतिक स्तर का निर्धारण करती है। दैनिन्दिनी वस्तुओं, उपकरणों में कलात्मक अंकन और रंग संयोजन उन्हें सादृश्यता प्रदान कर आनंददायी बनाता है। कला का यही तो सौन्दर्यान्वेषण है। इस सौन्दर्यान्वेषण में शिल्प, चित्र, मूर्ती और वास्तु कलाओं का समग्रता से विस्तार अर्न्तनिहित जो होता है।

बहरहाल, हमारी जो परम्परागत कलाएं हैं, उनमंे जीवन के हर पहलू की अनुगूंज है। मानव के अपने परिवेश की स्मृतियां इनमंे हैं और है अर्न्तनिहित भावना का साकार रूप। राजस्थान तो हस्तकलाओं, हस्तशिल्प परम्पराओं का जैसे गढ़ है। पन्नालाल मेघवाल ने पिछले दिनों अपनी पुस्तक ‘शिल्प सौन्दर्य के प्रतिमान’ जब भेंट की तो लगा मैं हस्तकलाओं, हस्तशिल्प के इस गढ़ में जैसे प्रवेश कर गया हूं। गढ़ का द्वार खुलता है तलवार, खुखरी, खंजर, गुप्ती, ढ़ाल-तलवार आदि पर नक्काशी करने वाले सिकलीगर परिवारों की कला के बखान से। आगे बढ़ता हूं तो पुस्तक गढ़ की दरो-दीवारों पर कांच पर सोने के सूक्ष्म चित्रांकन की बेहद सुन्दर थेवा कला है। मिट्टी से निर्मित छोटे-छोटे गवाक्ष, जालियां, कंगूरों की गृहसज्जा में उपयोग आने वाली मिट्टी की महलनुमा कलाकृतियां ‘वील’ है। लकड़ी का चलता फिरता देवघर काष्ठ-तक्षित कावड़ है और है बाजोट, मुखौटे, कठपुतली, लाख की कलात्मक वस्तुएं, मोलेला की मृणमृर्तियां, पीतल के गहने-भरावे, शीशम की लकड़ी पर किये तारकशी आदि की मनोहारी कलाएं। लोक मन के अवर्णनीय उल्लास, उमंग की सौन्दर्य सृष्टि करती कलाओं का मेघवाल का पुस्तक गढ पाठकीय दीठ से हर ओर, हर छोर से लुभाता है। पन्नालाल ने इस गढ़ को कलाकारों से बतियाते और राजस्थान की कला से संबद्ध बहुतेरी पुस्तकों को खंगालते रचा है। इस रचाव में वे राजस्थान की प्रमुख कलाओं, हस्तशिल्प आदि की सहज जानकारी तो देते ही हैं, साथ ही लुप्त होती उन कलाओं की ओर भी अनायास ध्यान आकर्षित करते हैं, जिन्हें आज संरक्षण की अत्यधिक दरकार है।

कला की प्रभा और प्रतिभा सदा सर्वोन्मुखी रही है। ऐसा है तभी तो हमारी इन पारम्परिक कलाओं को हम आज भी अपने घरों मंे सहेजे हुए हैं। लोक का क्या अब यहीं ही नहीं बचा रह गया है आलोक!

Link- http://drrajeshvyas.blogspot.com/2010/09/blog-post_18.html

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  1. बहुत ही सुंदर आलेख. भाषा का सौंदर्य देखने लायक है. प्रसंगवश क्या ये वही पन्नालाल हैं जो पन्नालाल प्रेमी के नाम से हकदार समाचार पत्र संपादित करते हैं?

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  2. पन्नालाल जी मेघवाल सम्प्रति सूचना एवं जनसम्पर्क विभाग में संयुक्त निदेशक (समाचार) के पद पर कार्य कर रहे हैं. आप सांस्कृतिक विषयों पर निंरतर लेखन से भी जुड़े हुए हैं.उदयपुर के मूल निवासी मेघवाल की यह पुस्तक नेशनल पब्लिशिंग हाऊस दरियागंज नई दिल्ली से प्रकाशित हुई है. हकदार के संपादक पन्नालालजी प्रेमी बीकानेर से हैं.

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  3. आपको धन्यवाद प्रमोद पाल जी.

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  4. गणतंत्र दिवस के राज्य स्तरीय समारोह में मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने सूचना एवं जनसम्पर्क अधिकारी और लेखक डॉ. राजेश कुमार व्यास को उत्कृष्ट मौलिक लेखन के लिए 10 हजार रूपये नकद पुरस्कार एवं प्रशस्ति पत्र प्रदान कर सम्मानित किया। डॉ. व्यास को यह पुरस्कार उनके द्वारा लिखी गयी पुस्तक ‘पर्यटन उद्भव एवं विकास’ के लिए प्रदान किया गया। राज्य स्तरीय समारोह में मुख्यमंत्री द्वारा दिए गए प्रशस्ति पत्र का वाचन करते हुए भारतीय प्रशासिनक सेवा की वरिष्ठ अधिकारी एवं सामान्य प्रशासन विभाग की प्रमुख शासन सचिव किरण सोनी गुप्ता ने कहा कि डॉ.व्यास ने राजकीय सेवा में रहते हुए मौलिक लेखन के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य किया है। उनकी पुस्तक पर्यटन उद्योग की चुनौतियों का सामना करने की तो दिशा देती ही है साथ ही पर्यटन के सिद्धान्तों और व्यवहार पर भी हिन्दी में अपनी तरह की पहली पुस्तक है। मेघयुग ब्लॉग की ओर से हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं।

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